एन इनसिग्निफिकेंट मैन : जैसे अपने नायक को बिना कवच-कुंडल के देखना

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पहली बार न्यूज़लॉड्री हिन्दी पर प्रकाशित हुआ आलेख। पूरी फ़िल्म VICE के यूट्यूब चैनल पर देखे जाने के लिए यहाँ उपलब्ध है। फ़िल्म देखकर आलोचना पढ़ेंगे तो आैर अच्छा होगा।

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तीन साल पहले लॉरा पॉइट्रास की सनसनीखेज़ दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘सिटिज़नफोर’ देखते हुए मैं एक अद्भुत रोमांच से भर गया था। यह जैसे इतिहास को रियल-टाइम में आँखो के सामने घटते हुए देखना था। एडवर्ड स्नोडन को यह अंदाज़ा तो था कि वे कुछ बड़ा धमाका करने जा रहे हैं, लेकिन उसके तमाम आफ़्टर-इफेक्ट्स तब भविष्य के गर्भ में थे। ऐसे में ‘सिटिज़नफोर’ में उन शुरुआती चार दिनों की फुटेज में एडवर्ड को देखना, जब तक वे दुनिया के सामने बेपर्दा नहीं हुए थे, एक अजीब सी सिहरन से भर देता है। यह जैसे किसी क्रांतिकारी विचार को उसकी सबसे पवित्र आरंभिक अवस्था में देखना है, जहाँ उसमें समझौते की ज़रा भी मिलावट ना की गई हो।

खुशबू रांका आैर विनय शुक्ला निर्देशित दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘एन इनसिग्निफिकेंट मैन’ देखते हुए मुझे फिर वैसी ही सिहरन महसूस हुई, बदन में रोंगटे खड़े हुए। इसमें एक गवाही इस बात की भी है कि दस साल से दिल्ली का बाशिंदा होने के नाते आैर फिर इसी शहर पर किताब लिखने की प्रक्रिया में मेरा इस शहर से जुड़ाव ज़रा भी निरपेक्ष नहीं रह जाता। पर एक व्यापक परिदृश्य में यह उन तमाम लोगों के लिए बहुत ही विचलनकारी फ़िल्म होनेवाली है जिन्होंने दिसम्बर 2012 से लेकर दिसम्बर 2013 तक की उस अनन्त संभावनाअों से भरी दिल्ली को लिखा है, जिया है।

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नॉन-फिक्शन सिनेमा का समय अब आ गया है!

AIM

आनंद पटवर्धन की क्लासिक डॉक्यूमेंट्री ‘राम के नाम’ (1992) अपनी आँखों के सामने इतिहास को घटते देखने का शानदार उदाहरण है। उत्तर भारत में रामजन्मभूमि आन्दोलन के हिंसक उबाल को पटवर्धन का कैमरा लाइव दर्ज कर रहा था। यह भारत के इतिहास में एक निर्णायक क्षण है, जब हमारा वर्तमान हज़ार दिशाअों में खींचा जा रहा था। यहाँ कैमरा अनुपस्थित नहीं, बल्कि किसी गवाह की तरह घटनास्थल पर मौजूद है। वह खुद कोई कहानी नहीं रच रहा, बल्कि वर्तमान की सबसे महत्वपूर्ण कहानी के गर्भगृह में आपको खड़ा कर देता है। फ्रांस से निकली यह ‘सिनेमा वेरिते’ तकनीक दर्शक को निर्णय की एजेंसी प्रदान करती है, मुझे यह बहुत ही सम्माननीय बात लगती है।

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पिछले शुक्रवार सिनेमाघरों में लगी दो नौजवानों खुशबू रांका आैर विनय शुक्ला की डॉक्यूमेंट्री ‘एन इनसिग्निफिकेंट मैन’ इस ‘सिनेमा वेरिते’ स्टाइल आॅफ़ फ़िल्ममेकिंग का रोमांचक नया अध्याय है। इसलिए भी कि यह भारतीय दर्शक के मन में डॉक्यूमेंट्री सिनेमा को लेकर बने कई भ्रमों – कि वो बोरिंग होता है, बस जानकारी हासिल करने का माध्यम भर होता है, मनोरंजक नहीं होता, को तोड़ती है।

‘आम आदमी पार्टी’ के निर्माण के पहले दिन से खुशबू आैर विनय ने उन्हें फ़िल्माना शुरु किया आैर ज़रा भी निर्णयकारी हुए बिना – यहाँ कोई पॉइंट-टू-कैमरा साक्षात्कार नहीं हैं, कोई वॉइस-आेवर नहीं, सूत्रधार नहीं, यह फ़िल्म किसी बॉलीवुड थ्रिलर सा मज़ा देती है।

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