रवीश ने अपने ब्लॉग पर यह चर्चा शुरू की है कि किसने पुस्तक मेले से क्या खरीदा यह शेयर किया जाए. तो मुझे लगा कि ‘सनद रहे और वक्त ज़रूरत काम आए’ की परम्परा पर चलते हुए मुझे भी यह ‘पुण्य कर्म’ कर ही देना चाहिए! मेरे लिए यह तीसरा पुस्तक मेला था. दिल्ली आने के बाद दूसरा. पहली बार जब दादा,भाभी के साथ दिल्ली पुस्तक मेले में आया था उन दिनों उदयपुर में बी. ए. में पढ़ा करता था. दूसरा मेला मेरे दिल्ली रहते हुआ और तब से मैं दादा,भाभी के लिए दिल्ली में होस्ट हूँ. अब मैं कह सकता हूँ कि मैंने अपने 22 साल के जीवन में चार क्रिकेट वर्ल्डकप और तीन विश्व पुस्तकमेले देखे हैं.
Delhi Metropolitan:The Meking of an Unlikely City. Ranjana Sengupta. Penguin Books.
पिछले दिनों अपने सेमिनार के सिलसिले में मैंने ‘खोंसला का घोसला’ में मध्यवर्ग, शहरीकरण और लिविंग स्पेस की संरचना पर काम किया. यह फ़िल्म दिल्ली को अपना आधार शहर बनाती है और इस शहर की बदलती सत्ता संरचना का एक कमाल का पाठ रचती है. एक पंक्ति में कहूं तो यह फ़िल्म एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति की ‘यमुना पार’ या ‘पुरानी दिल्ली/ दिल्ली 6’ से निकलकर ‘साऊथ दिल्ली’ वाला बनने की तमन्ना का मुकम्मल बयान है. तमाम चिन्ह इस पाठ से निकलते हैं जिनमें से कुछ को मैंने अपने पर्चे में पकड़ने की कोशिश की. तो स्वाभाविक था कि मेले में दिल्ली पर आया एक नया अध्ययन देखकर मेरा मन मचल जाए. और दादा ने कहते ही किताब दिलवा दी.
Anna Karenina. Lev Tolstoy. Raduga Publications.
हाँ मैंने अभी तक अन्ना केरेनिना नहीं पढ़ी है. लेकिन इसे खरीदने का केवल यही कारण नहीं था. करीब तीन साल पहले मैंने अपना पहला लेख (प्रकाशित) जो लिखा था उसका विषय बचपन में पढ़ी रूसी कहानियों की याद था. दोस्त कहते हैं कि बहुत nostalgic लेख था. शायद वो सही कहते हैं. आज भी मुझे पुराने प्रगति प्रकाशन/ रादुगा प्रकाशन से एक लगाव सा है. वो मुझे मेरा बचपन याद दिलाते हैं जो बहुत खूबसूरत था. (तब नहीं लगता था, आज लगता है.) तो मैं ना केवल अन्ना कैरेनिना पढ़ना चाहता था बल्कि उसे उसी पुराने रूसी अनुवाद वाले कलेवर में पढ़ना चाहता था. किस्मत कि वो मुझे PPH पर आसानी से मिल गया.
साफ माथे का समाज. अनुपम मिश्र. पेंग्विन बुक्स.
अनुपम मिश्र की ‘आज भी खरे हैं तालाब’ एक चर्चित किताब रही है. मैंने इनके बारे में तब ज़्यादा जाना जब मैं MA में गाँधी पर बनी फिल्मों पर एक शोध कर रहा था. हालांकि अभी भी पढ़ा नहीं है लेकिन दादा का कहना है कि मुझे इन्हें पढ़ना चाहिए. और फ़िर जीतू भैया की वजह से हमें पेंग्विन पर ख़ास डिस्काउंट भी मिल रहा था. तो ऐसे में यह खरीद बिल्कुल मुफ़ीद रही!
A Roland Barthes Reader. Edi. Susan Sontag. Vintage.
सेमिनार पेपर के लिए संरचनावाद पढ़ा (द्वितीयक स्रोत से) और फ़िर लिखा. संदर्भ पर विवाद हो गया. और मैं मूल देखते ही ले आया. अब मूल पढने की कोशिश करूँगा और सामने वाले को विवाद का कोई मौका ही नहीं दूंगा. वैसे भी मुझे आजकल संरचनावादियों में रोलां बार्थ सबसे ज़्यादा आकर्षित कर रहे हैं.
अम्बेडकर साहित्य. सभी गौतम बुक सेंटर से प्रकाशित…
हिन्दू धर्मं की रिडल.
अछूत कौन और कैसे.
जाति भेद का उच्छेद.
शूद्रों की खोज.
बुद्ध और उनका धम्म.
इसमें अब क्या शक है के अम्बेडकर को पढ़ना बहुत ज़रूरी है. चाहता तो था कि पूरा समग्र खरीद लिया जाए लेकिन अभी इतने से ही संतोष कर लिया है. दादा भी ले जाना चाहता था. लेकिन अभी पहले मुझे मिल गया है.
A World To Win. Essays on Communist Manifesto. Leftword.
लेफ्टवर्ड वाले आधी कीमत पर बेच रहे थे. केवल चालीस रूपये!
याद के लिए:- यह किताब
कभी मैंने पापा को गिफ्ट की थी.
निबंधों की दुनिया. विजयदेव नारायण साही. वाणी प्रकाशन.
दोस्तों हिन्दी में M.Phil. कर रहा हूँ. पढ़ना पढता है सारा कुछ. अब तो पर्चे नज़दीक आ रहे हैं.
Fantasies of a Bollywood Love Thief. Stephen Alter. Harper Collins.
मेरी सबसे पसंदीदा ख़रीद. यह किताब ‘ओमकारा‘ के बनने के दौरान लिखी गई है लेकिन इसमें हिन्दुस्तानी सिनेमा से जुड़े और कई मज़ेदार किस्से भी हैं. रविकांत ने इसका ज़िक्र कर तिल्ली लगाई थी सबसे पहले. उसका ही नतीजा है यह ख़रीद.
हाँ, मैंने जिंदगी जी है. पाब्लो नेरुदा. अनुवादक मनीषा तनेजा. कांफ्लुएंस इंटरनेशनल.
पाब्लो नेरुदा की आत्मकथा का सीधा स्पेनिश से हिन्दी अनुवाद. मनीषा का किया मर्ख्वेज़ का अनुवाद ‘एकाकीपन के सौ साल’ आपने पिछले दिनों देखा होगा. मैंने उस उपन्यास का सौम्या सुरभि गुप्ता वाला अनुवाद पढ़ा था. तो मैं मनीषा तनेजा का किया यह पहला अनुवाद पढूँगा. देखें इसका नंबर कब आता है.
सिनेमा के शिखर. प्रदीप तिवारी. संवाद प्रकाशन.
विश्व सिनेमा के चर्चित फिल्मकारों के जीवन और सृजन पर लेख हैं. मुझे एक परिचयात्मक जानकारी मिलने की उम्मीद है.
अपनी धरती, अपना आकाश. विजय शर्मा. संवाद प्रकाशन.
एक और परिचयात्मक किताब. नोबल विजेताओं के जीवन/विचार/रचना पर केंद्रित.
हंसने वाला कुत्ता. सत्यजित राय. प्रकाशन विभाग.
सत्यजित राय बचपन से मेरे प्रिय कहानीकार रहे हैं. उनकी कहानियाँ जब भी कहीं हिन्दी में मिल जाएं, मैं नहीं छोड़ता. और जो दोस्त आजकल ‘तारे ज़मीन पर’ देखकर बौराए हुए हैं उन्हें मेरी सलाह है कि सत्यजित राय की कहानी ‘सदानंद की छोटी दुनिया’ एकबार ढूंढकर/खोजकर/तलाशकर ज़रूर पढ़ें.
जो ख़रीदा था और उसमें से जो उदयपुर जाने से बच गया, मेरे पास रह गया वो सब बता दिया है. अब यह मत पूछियेगा कि क्या पढ़ा? कितना पढ़ा? कब पढ़ा? 2007 में शुरू किया उपन्यास ‘काइट रनर’ तो अभी तक जारी है. अब और क्या कहूँ. फ़िर भी उम्मीद है और उम्मीद पर ही दुनिया कायम है! सलाम!