in films

वे भिन्न थे। अाज से खड़े होकर देखने से चाहे भरोसा न हो, लेकिन जब वे अाए थे, तब वे सिनेमा का ’अन्य’ थे। और उन्होंने इसे ही अपनी ताक़त बनाया। उस ’सिनेमा के अन्य’ को सदा के लिए कहानी का सबसे बड़ा नायक बनाया। वो AIR वाला अस्वीकार याद है, उनकी आवाज़ को मानक सांचों से ’भिन्न’ पाया गया था। जल्द ही उन्होंने वे ’मानक सांचे’ बदल दिए।

पंजाब के देहातों से भागे गबरू जवानों और पीढ़ियों से सिनेमा बनाते आए खानदानी बेटों के बीच वे एक हिन्दी साहित्यकार के बेटे थे। वे एक ऐसी शहरी मायानगरी के महानायक बने जहाँ आज भी उनके गृहराज्य से आए लोगों को ’भईया’ कहा जाता है। वे ज़रूरत से ज़्यादा लम्बे थे। इसे उनके नायकीय व्यक्तित्व पर प्रतिकूल टिप्पणी की तरह कहा गया। फिर हुआ यह कि उनकी यह लम्बाई उस ऊंची महत्वाकांक्षाओं वाले महानगर के सपनों की वैश्विक प्रतीक बन गई।

कहा गया कि वे नायिकाओं के साथ सफ़ल रोमांटिक जोड़ी कैसे बना पायेंगे? उन्होंने अपने सिनेमा में नायिकाओं की ज़रूरत को ही ख़त्म कर दिया। अमिताभ ने हिन्दी सिनेमा की मुख्यधारा को हमेशा के लिए बदल दिया और यह अलिखित नियम पुन: स्थापित किया कि चाहे यहाँ सौ में से नब्बे नायक हमेशा ’अन्दर वाले’ रहें, ’महानायक’ हमेशा कोई बाहरवाला होगा। वे हिन्दी सिनेमा का ’अन्य’ थे, फिर भी वे ’बच्चन’ हुए, यही उनका हमको दिया सबसे बड़ा दाय है।

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वो एक मिसाल हैं कि मेहनत से क्या कुछ नहीं पाया जा सकता , मेरे सबसे पसंदीदा कलाकारों में से एक | बहुत खुश-किस्मत हूँ कि उनके साथ अपना जन्मदिन शेयर करता हूँ !!!

Never thought about his works from this point of view. Thanks for giving me such a distinct perception. FYI, I am not a big fan of work of Bachhan except few films like Kalla Pathar, Dev , Trishul, Deewar, Anand, and Sarkar. But I must admit that there is something in his personality that does not get easily replaced by anyone else. That screen presence even in the worst films making role look like believable is not something that anyone can pull off.