शाहरुख़ ख़ान और अक्षय कुमार जैसे बड़े सितारों को ’आम आदमी’ कहकर देखते-दिखाते हिन्दी सिनेमा में बरस बीते. इन्हीं सितारों की चकाचौंध में पहले हिन्दी सिनेमा से गाँव गायब हुआ और उसके साथ ही खेती-किसानी की तमाम बातें. मल्टीप्लैक्स के आगमन के साथ सिनेमा देखने के दाम इतने बढ़े कि हमारा मुख्यधारा का सिनेमा इस महादेश के गाँवों और छोटे कस्बों में रहने वाले असल ’आम इंसान’ से और दूर होता गया. देखिए, जिस समय में हम जी रहे हैं ’पीपली लाइव’ जैसी फ़िल्म का होना एक घटना है. यह फ़िल्म बेहतरीन कास्टिंग का उदाहरण है. जैसे सिनेमा से निष्कासित ’आम आदमी’ अपना हक़, अपना हिस्सा माँगने खुद सिनेमा के परदे पर चला आया है. सिनेमा के पटल पर अन-पहचाने लेकिन बरसों के अनुभवी दसियों कलाकार जैसे एक साथ आते हैं और ’पीपली लाइव’ को एक हंगामाखेज़ अनुभव बना देते हैं.
एक रघुवीर यादव और नसीरुद्दीन शाह को छोड़कर यहाँ नए कलाकारों की पूरी फ़ौज है. हिन्दी सिनेमा से ’आम आदमी’ के निष्कासित होने का रोना रोते मेरे जैसे बहुत से आलोचक ’पीपली लाइव’ देखकर हतप्रभ हैं. फ़िल्म में ’नत्था’ की मुख्य भूमिका निभाने वाले ओंकार दास माणिकपुरी को शायद अब तक आप उनके छोटे परदे पर हुए तमाम साक्षात्कारों द्वारा पहचान चुके होंगे. लगता है जैसे ’नत्था’ के रूप में हिन्दुस्तान के सुदूर हाशिए पर छूटा ’आम आदमी’ मुख्यधारा में अपनी दावेदारी जताने चला आया है. लेकिन उनके अलावा मंझे हुए कलाकारों की पूरी फ़ौज दिखाई देती है ’पीपली लाइव’ में जिन्हें आप सिनेमा के परदे पर इस तरह पहली बार देख रहे हैं.
इनमें से ज़्यादातर हबीब तनवीर के थियेटर ग्रुप ’नया थियेटर’ के स्थापित कलाकार हैं जो अपने फ़न के माहिर हैं. इनमें से बहुत से कलाकार ऐसे हैं जिनके नाम आपको पूरा दिन गूगल खँगालने के बावजूद हासिल नहीं होंगे. इसलिए यह और ज़रूरी है कि इन सभी रत्नों की नाम लेकर तारीफ़ की जाए. तारीफ़ कीजिए ’धनिया’ की भूमिका निभाने वाली शालिनी वत्स की. गाँव की कामकाजी औरत की जिजीविषा को जे.एन.यू. में पढ़ी शालिनी ने परदे पर बखूबी साकार किया है. और अम्मा की भूमिका में फ़ारुख़ ज़फ़र ने पूरा मुशायरा लूट लिया है. टीवी रिपोर्टर ’कुमार दीपक’ बने विशाल शर्मा अपनी भूमिका और उसमें छिपे व्यंग्य के लिए चहुँओर तारीफ़ पा रहे हैं.
तारीफ़ कीजिए लोकल थानेदार बने अनूप त्रिवेदी की जो फ़िल्म में अपने ख़ालिस मुहावरे खींचकर मारते थे बुधिया और नत्था के मुंह पर. अनूप एन.एस.डी रिपर्टरी के प्रॉडक्ट हैं. और फ़िल्म में दलित नेता पप्पूलाल का किरदार इतनी प्रामाणिकता से निभाने वाले रविलाल सांगरे को कौन भूल सकता है. रविलाल भी हमें ’नया थियेटर’ की देन हैं. मुझे ख़ासतौर पर नत्था को सरकारी योजना के तहत ’लालबहाद्दुर’ देने आए बी.डी.ओ. दत्ता सोनवने तथा नत्था के दोस्त ’गोपी’ बने खड़ग राम याद रहेंगे. जिस तरह खड़ग राम मीडिया के सामने वो ’आत्मा बहुते घबड़ाए रही है’ बोलते हैं, मैं तो उनपर फ़िदा हो गया.
विशेष उल्लेख ’होरी महतो’ की भूमिका में फ़िल्म का सबसे महत्वपूर्ण रोल निभाने वाले एल. एन. मालवीय का. आपको हिन्दी सिनेमा के इतिहास में ऐसे कितने किरदार याद हैं जिनका फ़िल्म में सिर्फ़ एक ही संवाद हो लेकिन वो एक ही संवाद बरसों तक आपके स्मृति पटल पर अंकित रहे? ’होरी महतो’ के उस एक संवाद का असर कुछ ऐसा ही होता है दर्शक पर. और ’राकेश’ की भूमिका में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की अदाकारी एक बार फ़िर चमत्कारिक है. उनका चेहरा जैसे आईना है, उनके मन की सारी दुविधाएं उनका चेहरा बयाँ करता है.
’पीपली लाइव’ देखकर प्रेमचंद की याद आती है. हिन्दी के इस महानतम कथाकार की रचनाओं का सा विवेक और वही साफ़ दृष्टि ’पीपली लाइव’ की सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है. फ़िल्म के निर्देशक अनुषा रिज़वी और महमूद फ़ारुकी बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने बाज़ार के दबाव के आगे अपनी फ़िल्म की प्रामाणिकता से समझौता नहीं किया. और आमिर का भी शुक्रिया इस असंभव प्रोजेक्ट को संभव बनाने के लिए.
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रविवार के ’नवभारत टाइम्स’ के कॉलम ’रोशनदान’ के लिए लिखा गया. बाइस अगस्त को प्रकाशित.
Bahut badhiya article hai peepli ke baare main… Bina kahani ko zaahir kiye hue..
I like the article