“अट्ठारह मार्च”, अस्पताल के कमरे में तारीख़ बताते ही मेरी माँ ने फ़ौरन कहा, “हाँ, आज शशि कपूर का जन्मदिन है।” उनकी आैर उनके नायक दोनों की सालगिरह मार्च के तीसरे हफ़्ते में आती है आैर अस्पताल में आॅपरेशन के बाद स्वास्थ्य लाभ करते हुए भी वे इस सुन्दर संयोग को भूली नहीं हैं। उम्र के छठवें दशक में आज भी वे शशि कपूर की बातें करते हुए अचानक जज़्बाती हो जाती हैं आैर उन हज़ारों कुंवारी लड़कियों का प्रतिनिधित्व करने लगती हैं जो साठ के दशक के उत्तरार्ध में उथलपुथल से भरे हिन्दुस्तान में जवान होते हुए प्रेम, ईमानदारी आैर विश्वास की परिभाषाएं इस टेढ़े मेढ़े दांतों आैर घुंघराले बालों वाले सजीले नायक से सीख रही थीं।
साठ के दशक में जवान होती एक पूरी पीढ़ी के लिए वे सबसे चहेता सितारा थे। यही वो अभिनेता थे जिसके कांधे पर पैर रखकर एक दर्जन फ्लॉप फ़िल्मों का इतिहास अपने पीछे लेकर अाए अभिनेता ने ‘सदी के महानायक’ की पदवी हासिल की। अमिताभ-शशि की जोड़ी का जुअा, जिसका प्रदर्शनकारी अाधा हिस्सा सदा अमिताभ के हिस्से अाता रहा, उनके कांधों पर भी उतनी ही मज़बूती से टिका था। इस रिश्ते की सफ़लता का अाधार था शशि का स्वयं पर अौर अपनी प्रतिभा कर गहरा विश्वास जो उन्हें कभी असुरक्षा बोध नहीं होने देता था। अमिताभ से उमर में बड़े होते हुए भी उन्होंने ‘दीवार’ जैसी फ़िल्म में उनके छोटे भाई का किरदार निभाया।