कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को, ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

Gulzar

वो मेरी जवानी का पहला प्रेम था. मैं उसे आज भी मेरी ज़िन्दगी की ’हेट्टी केली’ [1] कहकर याद करता हूँ. उस रोज़ उसका जन्मदिन था. मैं उसे कुछ ख़ास देना चाहता था. लेकिन अभी कहानी अपनी शुरुआती अवस्था में थी और मेरे भीतर भी ’पहली बार’ वाली हिचक थी इसलिए कुछ समझ न आता था. आख़िर कई दिनों की गहरी उधेड़बुन के बाद मैं तोहफ़ा ख़रीद पाया. लेकिन अब एक और बड़ा सवाल सामने था. तोहफ़ा तो मेरे मन की बात कहेगा नहीं, तो उसके लिए कोई अलग जुगत भिड़ानी होगी.

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