मेरी शुभकामनाएं ’ब्लैक स्वॉन’ के साथ हैं, उम्मीदें भी.

एक और सोमवार सुबह का जागना, एक और ऑस्कर की रात का इंतज़ार. उस सितारों भरी रात से पहले उन फ़िल्मों की बातें जिनका नाम उस जगमगाती रात बार-बार आपकी ज़बान पर आना है. पेश हैं इस साल ऑस्कर की सरताज पाँच ख़ास फ़िल्में मेरी नज़र से.

1.   दि किंग्स स्पीच

इस साल ऑस्कर की सबसे तगड़ी दावेदार बन उभरी, टॉम हूपर द्वारा निर्देशित ’दि किंग्स स्पीच’ ब्रिटेन के बाफ़्टा में बड़े पुरस्कार जीत चुकी है. मेरी नज़र में यह साल की सबसे प्रभावशाली ’फ़ीलगुड’ कहानी कहती है. पारंपरिक कथा सांचे में बंधी यह फ़िल्म ब्रिटेन के राजा किंग जॉर्ज VI के जीवन पर आधारित है जिन्हें बचपन से हकलाने की आदत थी. यह व्यक्तिगत संघर्ष और जीत की कथा है. फ़िल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा वह दोस्ती का रिश्ता है जो राजा और उनके स्पीच थैरेपिस्ट (ज्यौफ्री रश) के बीच इलाज के दौरान बनता है. किंग जॉर्ज VI की भूमिका में कॉलिन फ़िर्थ का ’बेस्ट एक्टर’ पुरस्कार जीतना लगभग तय माना जा रहा है.

2.   दि सोशल नेटवर्क

विश्व भर में आलोचकों की पहली पसंद बनी डेविड फ़िंचर की ’दि सोशल नेटवर्क’ हमारे दौर की सबसे समकालीन फ़िल्म है. सोशल नेटवर्किंग साइट ’फेसबुक’ के जन्मदाता मार्क जुकरबर्ग की कहानी पर बनी ’दि सोशल नेटवर्क’ ऑस्कर की रेस में बेस्ट फ़िल्म और बेस्ट डाइरेक्टर के गोल्डन ग्लोब जीत चुकी है. यह युवा दोस्तियों के बारे में है, महत्वाकांक्षाओं के बारे में है, प्रेम के बारे में है, विश्वासघात के बारे में है. यह उस लड़के के बारे में है जो दुनिया का सबसे कम उम्र अरबपति होकर भी अंत में अकेला है. इस फ़िल्म की कमाल की स्क्रिप्ट/ एडिटिंग/ संवादों की मिसाल अभी से दी जाने लगी है.

3.   ब्लैक स्वॉन

मेरे लिए यह इस साल ऑस्कर में आई सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी फ़िल्म है. निर्देशक डैरेन अरोनोफ़्सकी ज़िन्दगी के अंधेरे कोनों के चितेरे हैं. यह कलाकार के अंदरूनी संघर्ष की कथा है. उस ’आत्महंता आस्था’ की कथा जिसके चलते कला की अदम्य ऊंचाई को चाहता कलाकार अपने जीवन को स्वयं भस्म करता जाता है. यह कहानी नृत्य नाटिका ’स्वॉन लेक’ में मुख्य भूमिका पाने वाली ’नीना सायर्स’ की है जिसे नाटक के अच्छे और बुरे दोनों किरदार ’व्हाईट स्वॉन’ और ’ब्लैक स्वॉन’ साथ निभाने हैं. बैले डांसर ’नीना सायर्स’ की मुख्य भूमिका में नटाली पोर्टमैन विस्मयकारी हैं और उनमें मुक्तिबोध की कविताओं सा अँधेरा है, अकेलापन है, ऊँचाई है. इस साल ’बेस्ट एक्ट्रेस’ का पुरस्कार वह अपने नाम लिखाकर लाई हैं.

4.   इंसेप्शन

वह निर्देशक जिसके हर नए काम का दुनिया साँसे रोके इंतज़ार करती है. लेकिन क्रिस्टोफ़र नोलान का एकेडेमी से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. इस साल भी ज़्यादा बड़ी खबर एक बार फिर उनका ’बेस्ट डाइरेक्टर’ की लिस्ट से बाहर किया जाना रहा. ’इंसेप्शन’ इस साल की सबसे बहसतलब फ़िल्मों में से एक रही है. इसमें सपनों की कई परते हैं और उनके भीतर सच्चाई पहचान पाना लगातार मुश्किल हुआ जाता है. लेकिन अंतत: ’इंसेप्शन’ का मूलभाव एक अपराधबोध और उससे निरंतर जलता कथानायक (लियोनार्डो डि कैप्रियो) है. खेल-खेल में दुनिया पलट देने की बाज़ीगरी है और फिर भी कुछ न बदल पाने की कसमसाहट है जो जाती नहीं.

5.   दि फ़ाइटर

इस फ़िल्म को सिर्फ़ क्रिश्चियन बेल की अदाकारी के लिए देखा जाना चाहिए. सर्वश्रेष सहायक अभिनेता का गोल्डन ग्लोब जीत चुके बेल यहाँ अपनी पुरानी सुपरहीरो इमेज को धोते हुए एक हारे हुए इंसान का किरदार जीवंत बनाते हैं. कथा दो मुक्केबाज़ भाइयों की है. बड़ा भाई जिसका जीवन ड्रग्स और अपराध में उलझकर रह गया है. और छोटा भाई जिसके सामने अभी मौका है कुछ बनने का, कुछ कर दिखाने का. लेकिन बड़ा भाई के बिना छोटा भाई अधूरा है. डिस्फ़ंक्शनल फ़ैमिली ड्रामा होते हुए भी यहाँ रिश्तों की गर्माहट अभी बाकी है.

**********

रविवार 26 फ़रवरी के नव भारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ.