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इसे कहते हैं धमाकेदार शुरुआत!

IMG_1601इस बार के ओशियंस में लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित हुए गुलज़ार साहब समारोह के डायरेक्टर जनरल मणि कौल के हाथों तैयार किया प्रशस्ति पत्र ग्रहण कर बैठने को हुए ही थे कि अचानक मंच संचालक रमन पीछे से बोले, “गुलज़ार साहब, हमने आपके लिए कुछ सरप्राइज़ रखा है!” और फिर अचानक परदे के पीछे से आयीं रेखा भारद्वाज. उन्हें यूँ देखकर एक बार तो गुलज़ार साहब के साथ बैठे विशाल भारद्वाज भी ’चौंक गए’ से लगे. धूसर किरदारों वाला सिनेमा रचने वाले ये दोनों कलाकार आज भी हमेशा की तरह अपने पसन्दीदा ब्लैक एंड वाइट के विरोधाभासी परिधानों को धारण किए मंच पर उपस्थित थे. रेखा भी ख़ाली हाथ नहीं आई थीं. उनके हाथ में माइक था और उसके साथ ही शुरु हुआ गुलज़ार के कुछ अमर गीतों का उनकी जादुई उपस्थिति में पुनर्पाठ. तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी… दिल हूम हूम करे…

गुलज़ार साहब ने कहा कि आते हुए जो सिनेमा कि गलियाँ मैंने इस समारोह स्थल के अहाते में देखीं उनसे गुज़रते हुए अहसास हुआ कि वक़्त कैसे पंख लगाकर उड़ जाता है. उन्होंने बताया कि बाहर लगे बंदिनी के उस पोस्टर वाले सीन का क्लैप मैंने दिया था. जो कुछ पाया है अब तक, जो कुछ सहेजा है उसे आगे भी यूँ ही बाँटते रहने का वादा कर गुलज़ार साहब ने सबका धन्यवाद किया. सब जैसे सपनों की सी बातें थीं. संचालक रमन भी रह-रह कर समारोह का क्रम भूल-भूल जाते थे. समाँ कैसा मतवाला था इसका अन्दाज़ा आप इस बात से लगाइये कि गौरव ए. सी. की तेज़ी से परेशान हो टॉयलेट में घुसा तो उसने अपने एक ओर गुलज़ार को और दूसरी ओर विशाल भारद्वाज को हल्का होते पाया. तमाम कैमरे निरर्थक साबित हुए और माहौल को हमने अपने भीतर उतरते पाया. जैसे दो दुनियाओं के बीच का फ़र्क, लम्बा फ़ासला अचानक मिट गया हो. जादू हो जादू.

ग्यारहवें ओशियंस की ओपनिंग फ़िल्म थी रोमानिया की ’हुक्ड’. एक प्रेमी जोड़े की कहानी किसका कालखंड कुल-जमा एक शाम भर का था. बदहवास कैमरा जैसे दोनों पात्र उसे बदल-बदल कर चला रहे हों. संवादों में बनता तनाव और पात्रों के बीच लगातार उस तनाव को उठाकर ख़ुद से दूर फैंक देने की असफल जद्दोजहद. और फिर एक अनचाहे एक्सीडेंट के साथ फ़िल्म में आगमन होता है तीसरी पात्र का, एक प्रॉस्टीट्यूड. फ़िल्म की कहानी इन्हीं तीन किरदारों के सहारे आगे बढ़ती है. ’हुक्ड’ रिश्तों में ईमानदारी और विश्वास की ज़रूरत को दर्शाती फ़िल्म है. यह उन तनावों की फ़िल्म है जिन्हें हम अपनी ज़िन्दगी में खुशी पाने की चाहत में छोटे-छोटे समझौते कर खुद अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं. जैसा फ़िल्म की नायिका ने फ़िल्म की शुरुआत से पहले अपने वक्तव्य में कहा था कि हो सकता है यह बहुत दूर देश की कहानी है लेकिन इसके पात्रों और उन पर तारी तनावों से आप ज़रूर रिलेट कर पायेंगे.

इस बार ओशियंस के पिटारे में फ़िल्में कम चर्चाएं ज़्यादा हैं. आगे कतार में कुछ बेहतरीन सेशन विशाल भारद्वाज, अनुराग कश्यप, ज़ोया अख़्तर, इम्तियाज़ अली, राजकुमार गुप्ता और दिबाकर बैनर्जी के साथ प्रस्तावित हैं. इसके अलावा आप आने वाले दिनों में ’हरीशचन्द्र फ़ैक्ट्री’, ’ख़रगोश’, ’आदमी की औरत और अन्य कहानियाँ’ जैसी हिन्दुस्तानी और बहुत सी चर्चित विदेशी फ़िल्मों का हाल भी जान पायेंगे. तो खेल शुरु किया जाए!

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बहुत अच्छे! पिछले कुछ दिनों से बरदवाज रंगन का लिखना थोडा कम हो गया है. लेकिन अब तुम्हारा शुरु हो गया इसलिए कोई कमी महसूस नहीं होगी. फिल्मों का लाइन-अप तो अच्छा लग रहा है. ‘रोड टू संगम’ नहीं आ रही क्या? आए तो जाने मत देना.

और ‘Anti Christ’ नाम से भी एक बहु-चर्चित फिल्म है. वो शायद यहाँ ‘मामी’ में आ रही है. (पर मैं मुम्बई से बाहर जा रहा हूँ इसलिए देख नहीं पाऊँगा.)

ये लेख सिर्फ तुम्हारे ब्लॉग पर हैं या और भी कहीं आने का कार्यक्र्म है?